भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। यह सुनने में और कहने में तो हम गौरवान्वित होते हैं, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही है क्या? इसका ईमानदारी से जवाब दिए जाने की जरुरत है । व्यक्तिगत तौर पर मैं धर्मनिरपेक्षता पर पूरा विश्वास करती हूँ। मेरा ऐसा मानना है कि किसी भी देश में कोई भी समाज अपने आबादी एक छोटे हिस्से को सबसे अलग और पिछड़ा हुआ रखकर सम्पन्न नहीं हो सकता है। मुझे लगता है कि हमारे देश में समानता और अधिकारों की बहुत बाते होती है आए दिन अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति के अधिकारों की रक्षा की बाते होती हैं लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। देश में बहुत सी ऐसी घटनाएँ हुई है जो कि अखबारों की सुर्खियां भी बनती है। उदाहरण के तौर पर अभी कुछ दिनों पहले ही मध्य प्रदेश के छतरपुर में कुछ ऊँची जाति के लोगो ने एक दलित व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला क्योंकि उस छोटी जाति के युवक ने एक समारोह में बने हुए खाने को छू दिया था। सिर्फ इतनी सी बात से क्या कोई किसी व्यक्ति को इस हद तक मार सकता है कि उस व्यक्ति की मृत्यु ही हो जाए ?ऐसी बहुत सी घटनाएँ है जो ये संदेह पैदा करती है कि क्या सच मे हमारा भारत एक धर्म निरपेक्ष, महान देश है? मुझे ऐसा लगता है कि हमारे भारत में राजनीति को धर्म से अलग करके नहीं देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर हमारे देश में गाय को एक विशेष सम्मान प्राप्त है। जिससे गाय को माता का स्थान प्राप्त है और वहीं अन्य लोग गाय को एक सामान्य पशु मान कर गौ हत्या करते हैं। यह कैसी विडम्बना है? और इसी विषय को बहुत गंभीर राजनैतिक मुद्दा बना लिया जाता है।
इसी तरह मेरा ऐसा मानना है कि कोई भी देश शहरों या ऐतिहासिक जगहों के नाम बदलने से महान नहीं बनता है। देश महान बनता है अच्छे और ऊँचे विचारों का पालन करने से, लोकतंत्र की रक्षा करने से, देश महान बनता है देश हित में किये गए कार्यो से। साक्षरता और शिक्षा की प्रगति से।देश में सभी धर्मों के लोगो को बिना किसी जातिगत भेदभाव के विकास के समान अवसर मिलने से।लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि कई जगह तो आज भी छोटी जाति के लोगों का मंदिरों में प्रवेश वर्जित है। यहाँ तक कि कई गाँवों में आज भी ऊँची जाति और नीची जाति के लोगो की पानी की व्यवस्था अलग - अलग है।
पिछले कुछ सालों में देश में धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा मिला है। अब जो भी सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाए वही देश देशद्रोही करार दिया जाता है। जबकि मेरा ऐसा मानना है कि सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाना और अपने अधिकार माँगना देशद्रोह नहीं बल्कि लोकतंत्र में सच्ची श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं। इन सभी बातों में सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि लोग क्या खाएँ और कैसे खाए इसकी आजादी भी उन से छीन ली गई है।
अभी कुछ समय पहले ही मुझे जानकारी मिली है कि देश के किसी राज्य में गौ संसद की रचना हुई है। ऐसे और भी कई मुद्दे और विचार हैं जिन्हे पढ़ कर या सुन कर ये संदेह पैदा होता है कि ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है? देश में इतनी सारी समस्याओं को छोड़ कर ,''गौ संसद '' बना देने से क्या देश की सभी मूलभूत समस्याओं का समाधान हो जायेगा? देश में गौ रक्षा के लिए कानून हाथ में लेना , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अभियान और हमले करना , ये सब तो धर्म निरपेक्ष परंपराओं के लिए खतरनाक है। ऐसे धर्मनिरपेक्ष भारत की कल्पना हमने नहीं की, जिसमे हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही समाप्त हो जाएगी। सदियों से हमारे भारत में सभी धर्मों और जातियों के लोग परस्पर प्रेम से रहते आये हैं, लेकिन हिंसा व अवसरवादिता का जो '' चलन '' अब व्यवहार में आया है , वह देश हित में नहीं हो सकता है। देश में मत विभिन्नता हो सकती है लेकिन मन भिन्नता नहीं होनी चाहिए। लेकिन आज यही स्थिति हो रही है। क्या यह ठीक है? क्या इसे हम धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए स्वस्थ परम्परा कह सकते हैं? धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है और धर्म को राजनीति से अलग करती है। भारत को महान बनाने के लिए सांप्रदायिकता से छुटकारा दिलाना होगा सांप्रदायिकता के कारण हमारे देश की एकता और अखंडता को बहुत क्षति पहुंची है|
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