top of page
Writer's picture रिचर्ड जोसफ जोबी

जातिगत भेदभाव

Updated: Dec 20, 2020


"दुनिया में केवल एक ही जाति है... मानवता की जाति, केवल एक ही धर्म है... प्रेम का धर्म, और केवल एक ही भाषा है... हृदय की भाषा।"


जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो लंबे समय से भारतीय समाज में प्रचलित है। उपयुक्त पंक्ति पर ध्यान दे तो हम कह सकते हैं कि, मानवता ही एक जाति है। लेकिन वर्तमान समाज पर नज़र डालें तो समाज में जिस तरह का जातिगत व्यवस्था है, उसे हम कोढ़ कह सकते हैं। इस जातिगत व्यवस्था की वजह से कुछ लोगों में हीनता की भावना बढ़ रही है। यह लोगों के मन में संकीर्ण सोच पैदा करता है जिसके कारण वे लोगों को जाति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर आंकते हैं।


जाति व्यवस्था का वर्तमान परिदृश्य यह है कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का सब जगह हनन हो रहा है। समाज के तथाकथित उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों पर जूर्म ढाते हैं। उनका शोषण करते हैं। मूलभूत सुविधाओं से उन्हें वंचित कर दिया जाता है। उन्हें डरा धमाकर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है। दुर्भाग्य से वे या तो पुलिस तक पहुँच ही नहीं पाते हैं या पहुँच भी गए तो पुलिस उन्हें डरा धमाकर भगा देती है।

समाज में अभी भी अंतर्जातीय विवाह एक बहुत बडी समस्या है। समाज में एक युवा नागरिक अगर स्वेच्छा से अपनी जाति से भिन्न जाति की लड़की से विवाह करना चाहता है तो समाज के ठेकेदार इसको खाप पंचायत या अन्य तरीके से रोकने की कोशिश करता है। कई बार तो इन युवक युवतियों पर हमला किया जाता है और उन्हें जान से मार दिया जाता है। अगर सौभाग्य से वे बच भी गए तब भी उनका जीवन हमेशा खतरे में रहता है। उनके अपने ही उनके घोर दुश्मन बन जाते हैं।


जाति व्यवस्था समाज के विकास पर कई नकारात्मक प्रभाव डालती है। इस व्यवस्था ने लोगों को उनके अधिकारों का लाभ उठाने से रोक दिया है। यह व्यवस्था भेदभाव और निम्न जाति के लोगों में हीनता की भावना को जन्म देती है। वे जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे कि भोजन, कपड़े आदि से भी वंचित हो जाते हैं। यह उच्च जाति के लोगों में भी झूठी शान बढ़ाता है। इससे समुदायों के बीच घृणा की भावना का विकास होता है। मेरा मानना है कि जाति व्यवस्था एक सामाजिक बुराई है जो लंबे समय से भारतीय समाज में व्याप्त है। यह भेदभाव और आपसी वैमनस्य की ओर ले जाता है।


ऐसा देखा जा रहा है कि हर दिन कहीं न कहीं दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। यहाँ तक कि दलित महिला का बलात्कार और उनकी हत्या उच्च जाति के लोगों के लिए एक मामूली अपराध के रूप में देखा जाता है। न्यायालय में भी उन्हे न्याय नहीं मिलता है। एक पुरुष प्रधान समाज में, दलित महिलाओं को न केवल जाति के माध्यम से, बल्कि महिला होने के कारण भी अकल्पनीय उत्पीड़न झेलना पड़ता है, जहाँ से उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है। मेरे अनुसार, दलित महिलाओं में शिक्षा का नितांत अभाव है। निम्न साक्षरता के कई कारण है। जैसे- शैक्षिक संस्थाओं की कमी, स्कूलों और कॉलेजों का निजीकरण, अत्यधिक गरीबी की चक्रव्यूह। समाज में महिलाओं की वर्तमान स्थिति वास्तव में उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन कहा जा सकता है। [1]


भारतीय संविधान में नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है। लिंग, जाति , धर्म आदि के आधार पर राज्य किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकता है। हमारा संविधान किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग, रंग, सम्प्रदाय के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। लेकिन वास्तविकता तो कुछ और ही है। सांविधानिक तौर पर अस्पृश्यता को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसका प्रचलन वर्जित है।


वर्तमान परिदृश्य का एक उदाहरण मैं साझा करना चाहूँगा जो एक दलित महिला की है। मेरे पड़ोस में सुनीता नाम की एक दलित महिला घरेलू कामकाज करने के लिए आती थी। वह बहुत मेहनती थीं। दिनभर काम में व्यस्त रहती थी। घर की हर छोटी-बड़ी काम बहुत सफाई से करती थी। इसके बावजूद घर के सभी सदस्य उसके साथ दुर्व्यवहार करते थे, अनावश्यक चिल्लाते थे। सुनीता के बच्चों का लालन-पालन ठीक से नहीं हो रहा था। वे घर की साथ वाली सड़क पर दिनभर बैठे-बैठे समय गुज़ारते थे। मैं इस स्थिति को देखकर मन ही मन बहुत चिंतित और परेशान था। मैं चाहता था कि इस स्थिति से उसे किसी भी तरह बाहर लाया जाए।

कहते है कि जहाँ चाह है, वहाँ राह है। सार्थक प्रयास होनी चाहिए। उनके परिवार को मदद करना मैंने ठान लिया था। मैं चाहता था कि सम्मान का जीवन जीने का हक उनको भी मिले। बच्चों को ठीक से खाना और शिक्षा मिले। उनके बच्चे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करे। इस सम्बन्ध में मैंने अपने माता-पिता से बात किया और उनकी सहमति से सुनीता को अपने घर बुलाया। घरेलू कामकाज के लिए सुनीता तैयार हो गई। हमारे सहयोग से, सुनीता के जीवन में धीरे-धीरे बदलाव आने लगा। जो बच्चे सड़क पर यूँ ही समय गुज़ारते थे, उनके हाथों में अब पुस्तक और कलम दिखाई देने लगा।


हमें उन सभी लोगों का सम्मान करना चाहिए, जो हमारे घरों में काम करते हैं। हमें उन्हें कमज़ोर हीन और बेकार नहीं समझना चाहिए। इसलिए, उन्हें कुछ आवश्यक वस्तुएं जैसे पुराने कपड़े, खाना आदि देकर कुछ मदद करने का प्रयास करना चाहिए जिससे वे भी सम्मानित जीवन जी सकें।


आज भी हमारे समाज में बहुत भेदभाव का बोलबाला है। इस तरह का भेदभाव बिल्कुल खत्म होना चाहिए। अगर यह खत्म नहीं हुआ, तो हमारे समाज का उन्नति नहीं हो सकती है। मैं यह कहकर अपनी बात समाप्त करना चाहूँगा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमारे देश में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार है, यह हमारा कर्तव्य है कि एक नागरिक के रूप में जातिगत भेदभाव को रोकें और लोगों को उसके बारे में जागरूक करें। आज हमारे समाज को जातिगत भेदभाव की दलदल से पूरी तरह से बाहर निकालने की आवश्यकता है। दुनिया में केवल एक ही जाति है..... मानवता की जाति।


ग्रंथ सूची:



अन्य स्रोत:-



81 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page