हमारे देश में, महिलाओं पर भयावह अपराध किए जाते हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है और उन्हें मार दिया जाता है। एक लड़की के चेहरे पर एसिड फेंक दिया जाता है। न्याय पाने के लिए महिलाओं को संघर्ष करना पड़ता हैं। वे अपने गुनहगारों को दंडित करने के लिए बहुत सारी बाधाओं का सामना करती हैं, जिन्होंने उनके साथ गलत किया हो । लड़कियाँ रात में बाहर जाने से डरती हैं। वे एक आदमी के प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार करने से पहले सौ बार सोचती हैं। लेकिन सवाल हमें खुद से पूछना चाहिए: हमारी सरकार या हमारा कानून महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए क्या कर रहे हैं ? महिलाओं को सुरक्षित रखने के लिए वे क्या कर रहे हैं ? जवाब है, कुछ भी नहीं। हजारों लंबित मामले भिन्न भिन्न अदालतों में चल रहे हैं लेकिन उनकी सुध कौन ले रहा है? और अगर आरोपी कोई राजनीतिक या पैसे वाला व्यक्ति हो , तो पीड़िता को कभी न्याय नहीं मिलता है। बस पुलिस अधिकारियों को कुछ पैसे देने से , मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। जब कोई व्यक्ति इन सभी अपराधों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाता है, उसका लगातार कंठरोध कर दिया जाता है। कुछ लोग फिर भी अपनी आवाज़ उठाते हैं , और तब उन्हें मार दिया जाता है। पीड़िता के असहाय माता-पिता को अपना मामला वापस लेने को कहा जाता है। हम “बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ” की बड़ी- बड़ी बातें करते हैं , लेकिन असल ज़िंदगी में इसका पालन ही नहीं करते।
निर्भया बलात्कार मामला तो आप सभी को याद ही होगा ? आठ साल के संघर्ष के बाद ही लड़की के माता-पिता को न्याय मिला। उन में से एक अपराधी नाबालिग था, और इसलिए उसको हल्की सज़ा देकर छोड़ दिया गया। यह कैसा न्याय है? अपराधी तो अपराधी ही होता है , चाहे वह छोटा हो या बड़ा। उसे छोटा कहकर सज़ा ना देना कहाँ का न्याय है ? यह तो सिर्फ़ एक वो घटना है जो दुनिया के सामने आई थी। ना जाने हमारे देश में ऐसी कितने निर्भया होंगी जिनके माता - पिता उनके न्याय मिलने का आज भी इंतज़ार कर रहे हैं।
एक और मामला है कथुआ रेप केस। आठ साल की पीड़िता को बहुत संघर्षों के बाद न्याय मिला था। और सिर्फ इसलिए कि पीड़िता अल्पसंख्यक समुदाय से थी, कई राजनीतिक दल आरोपी का समर्थन कर रहे थे । लड़की एक मुस्लिम है, इसका मतलब यह नहीं है कि आप उसका बलात्कार कर सकते हैं और उसे मार सकते हैं।
हम सभी ने फिल्म छपाक तो देखी ही होगी। यह एक वास्तविक एसिड हमले उत्तरजीवी के बारे में है, जिनका नाम लक्ष्मी अग्रवाल है । क्या हम यह भी जानते हैं कि लक्ष्मी को कितना दर्द से गुजरना पड़ा था ? पंद्रह साल की उम्र में, उसके चेहरे पर एसिड फेंक दिया गया था। उसे न्याय पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। वह अभी भी दुकानों में एसिड की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए लड़ रही है। उसका चेहरा बर्बाद हो गया है, और एक गायिका बनने का सपना टूट गया। लेकिन वह अभी भी उसके जैसे लोगों के लिए लड़ रही है। मुझे ऐसे व्यक्तित्व पर गर्व है।
घरेलू हिंसा के घटनाएँ भी बढ़ रहे हैं। घरेलू हिंसा महिलाओं के खिलाफ एकल-सबसे बड़ा अपराध बन गया है। दिन बीत रहे हैं , लेकिन औरतों पर हुए घरेलू हिंसा के मामलें तो बस बढ़ते ही जा रहे हैं। हम सभी ने कभी ना कभी अपने आसपास घरेलू हिंसा के घटनाएँ घटते देखे ही होंगे।
दहेज प्रथा, जिसमें दुल्हन के परिवार को दूल्हे के परिवार के लिए नकदी के रूप में उपहार देने और कीमती चीजें देना भी शामिल है, की काफ़ी हद तक समाज द्वारा निंदा की जाती है, लेकिन यह प्रथा आज भी हमारे समाज में कैंसर की तरह फैल रही है। समय बीतता चला गया स्वेच्छा से कन्या को दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे वरपक्ष का अधिकार बनने लगा और वरपक्ष के लोग तो वर्तमान समय में इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मान बैठे हैं । दहेज माँगना और देना दोनों निन्दनीय कार्य हैं । जब वर और कन्या दोनों की शिक्षा-दीक्षा एक जैसी है, दोनों रोज़गार में लगे हुए हैं, दोनों ही देखने-सुनने में सुन्दर हैं, तो फिर दहेज की मांग क्यों की जाती है? कन्या पक्ष की मजबूरी का नाजायज़ फ़ायदा क्यों उठाया जाता है? और दुख की बात यह है कि सिर्फ़ गाँवों में ही नहीं, लेकिन शहरों और महानगरों में भी दहेज प्रथा बहुत सालों से चल रही है।
भारत में, लड़कियों को माँ के पेट में ही मार डाला जाता हैं। सिर्फ़ इसलिए, की वह एक लड़की है। माता-पिता और समाज एक बालिका को अपने ऊपर बोझ समझते हैं, जबकि लड़के उत्पादक हैं। भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही लड़कियों के बारे में बहुत सारे मिथक हैं जो लड़कियाँ हमेशा अपनाती हैं और लड़के हमेशा मानते हैं। कन्या भ्रूण हत्या की यह गलत समस्या बीते कई सालों से जा रही है। लड़कियाँ, लड़कों से अलग नहीं होती, फिर इतना भेदभाव क्यों ?
महिलाओं पर बढ़ते अपराध का समर्थन सर्वथा अनुचित है। हमें जल्द से जल्द इन सभी कुप्रथा से समाज को मुक्ति की तरफ़ ले जाना पड़ेगा। लड़कियाँ अब लड़कों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं। वह किसी भी चीज़ में पीछे नहीं हैं। वह चाहे तो कुछ भी कर सकती हैं। हमें उनके पंख नहीं काटने चाहिए , और उन्हें उड़ने देना चाहिए। जिस देश में दुर्गा की पूजा शक्ति के रूप में होती है, उस देश में महिलाओं के साथ इस तरह का घिनौना अत्याचार यह कैसी विडम्बना है? समाज के सभी वर्गों के लिए सर्वथा विचारणीय है।
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